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जालौन जिले के कोंच कस्बे की रामलीला पूरे उत्तर प्रदेश में अलग स्थान रखती है। यहां की रामलीला १६३ वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। पहले तो यहां हर लीला का मंचन किसी नियत स्थान और नियत स्टेज की बजाय आसपास के बाग, मंदिर और सरोवर में प्रसंग के हिसाब से लोकेशन तय कर किया जाता था। १९५७ में यहां रामलीला भवन बन गया। इसके बावजूद राम का सीता-लक्ष्मण के साथ सरयू पार गमन, मारीच वध और रावण-जटायु युद्ध व दशहरे की लीलाएं खुले में ही होती हैं। यहां की रामलीला को यूनेस्को द्वारा प्रायोजित परियोजना के तहत काम करते हुए अयोध्या शोध संस्थान ने देश की प्रमुख मैदानी रामलीला में शामिल किया है। इसके अलावा भी इस रामलीला की कई विशेषताएं हैं।

इसमें राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न का अभिनय मात्र ब्राह्मण जाति के बालक कर सकते हैं और उन्हें जब तक रामलीला चलती है, परिवार से विलग होकर रामलीला समिति के संरक्षण में कई मर्यादाओं की प्रतिज्ञा में बंधकर रहना पड़ता है। रामलीला के लिए आज तक किसी सरकारी या अर्द्ध सरकारी संस्था से कोई सहायता नहीं ली गई। नगर के लोग ही घर-घर राम, सीता, लक्ष्मण के पहुंचने पर उनके तिलक स्वरूप और आरती उतारते हुए जो न्यौछावर देते हैं उसी से सारी व्यवस्थाओं का संचालन होता है। मुस्लिम नागरिक भी इसमें अर्पण कर सद्भाव की मशाल जलाने में पीछे नहीं रहते। यहां किसी कलाकार को बाहर से बुलाने की परम्परा नहीं है न ही किसी पात्र को कोई पारिश्रमिक दिया जाता है। यहां तक कि मुस्लिम कारीगर, जो कि कई प्रसंगों में पुतले बनाने के अलावा धनुष-वाण तैयार करने में भूमिका निभाते हैं, वे भी कोई मेहनताना नहीं लेते। रामलीला के लिए हर कोई श्रद्धा और पूजा भाव से अपनी सेवा समर्पित करता है। यहां रामलीला का २१ दिन का शेड्यूल है। पंचांग की तिथि बदलने से कई बार और जगह दशहरा एक दिन पहले हो जाता है और यहां २१ वां दिन दशहरे का अगला दिन होने से उसी दिन रावण वध लीला प्रदर्शित की जाती है। इस बार ऐसा ही हो रहा है। दशहरा २४ अक्टूबर को है जबकि कोंच की रामलीला में रावण वध २५ अक्टूबर को होगा।


जालौन जिले के निवासी लोक संस्कृति विशेषज्ञ अयोध्या प्रसाद कुमुद ने सन् २००० में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की पत्रिका छायानट में कोंच की रामलीला को लेकर एक आलेख प्रकाशित कराया था। इसी के बाद यह रामलीला व्यापक स्तर पर चर्चा में आई। अयोध्या शोध संस्थान ने कुमुद जी के मार्गदर्शन में इसमें हर दिन की लीला की फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी करा ली है। संस्थान द्वारा २०१० में जारी प्रदेश की प्रमुख रामलीलाओं के २४ बहुरंगी चित्रों वाले कैलेंडर में आठ चित्र अकेले कोंच की रामलीला के शामिल किए गए। त्रिनिदाद की सिटी यूनीवर्सिटी की प्रोफेसर इंद्राणी रामप्रसाद ने कोंच की रामलीला पर शोध लिखकर इसकी ख्याति को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पहुंचा दिया। यहां की मैदानी लीलाओं में राम के सरयू पार उतरने की लीला ऐतिहासिक सागर तालाब पर होती है। तालाब में बाकायदा नाव डाली जाती है जिस पर राम, सीता, लक्ष्मण को बैठाकर केवट का अभिनय कर रहा पात्र उस पार ले जाता है। गढ़ी के मैदान में मारीच वध और रावण-जटायु युद्ध की लीला खेली जाती है। १० फुट तक ऊंचाई के स्वर्ण मृग का पुत��ा बनाकर मैदान में दौड़ाया जाता है।

सीता के आग्रह पर राम उसके पीछे-पीछे जाने का अभिनय करते हैं। इसके बाद जटायु के लिए भी पात्र नहीं ट्रॉली पर रखकर पुतला लाया जाता है। जिसे १०-१५ लोग खींचते हैं। रावण आगे बढ़ते जाते पुतले पर उसी गति से दौड़ाये जा रहे विमान में बैठा खड्ग प्रहार करता रहता है। कई घंटे तक यह रोमांचक प्रदर्शन होता रहता है। दशहरे की लीला में रावण और मेघनाद के कई फुट ऊंचे पुतलों से राम का भीषण युद्ध धनुताल के मैदान में होता है। इन तीनों ही लीलाओं के अवसर पर मेला सजाया जाता है, जिसमें हजारों की भीड़ जुटती है। मनोरंजन माध्यमों के ड्राइंग रूम तक सिमटते जाने के इस दौर में कोंच की रामलीला की जीवंतता बरकरार है तो यह बहुत बड़ी बात है। अयोध्या प्रसाद कुमुद का कहना है कि अगर व्यवस्थित प्रयास किया जाए तो कोंच की रामलीला को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन के मानचित्र पर शामिल कराया जा सकता है

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